https://youtu.be/AOaImk2nHYg?si=TBlvzQ0yAfdfInZb दोस्तों नटराज और अप्सरा पेंसिल्स हम सभी के बचपन की साथी रही है लेकिन क्या आपको पता है जब तीन दोस्तों ने इस कंपनी की शुरुआत की थी तब लोग हंसते थे उन्हें कहा जाता था पेंसिल बनाकर करोड़पति बनोगे क्या लेकिन यही पेंसिल बनाने वाली कंपनी आज एक दो करोड़ नहीं बल्कि कई स करोड़ की अंपायर बन चुकी है तो चलिए आज जानते हैं कि बीजे सांगवी और उनके दोस्तों ने कैसे हर मुश्किल को पार कर हिंदुस्तान पेंसिल्स को भारत के टॉप स्टेशनरी ब्रांड्स मेंला खड़ा किया साल था 1950 का इंडिया अभी-अभी आजाद हुआ था और यहां पढ़ाई का सपना देखने वाले लाखों बच्चों के पास एक अच्छी पेंसिल तक नहीं थी हां कुछ अमीर बच्चे महंगी विदेशी पेंसिल्स खरीद सकते थे लेकिन बाकी उनके लिए कुछ गिनी चुनी लोकल पेंसिल ही थी जो कमजोर थी जल्दी टूट जाती और जिनसे लिखते टाइम हाथ काला हो जाता था असल में इंडिया के अंदर अच्छी पेंसिल्स बनती ही नहीं थी अगर किसी को क्वालिटी पेंसिल चाहिए होती थी तो उसे इंग्लैंड जर्मनी या फिर जापान की महंगी इंपोर्टेड पेंसिल्स खरीदनी पड़ती थी उस टाइम एडब्ल्यू फेबर कास्टल मित्सुबिशी प...
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https://youtu.be/Z71SOf-veoU?si=cybk3kZoRO4s3M2P तो दोस्तों एक रेलवे स्टेशन जहां दिनभर भीड़भाड़ रहती है वहीं रात के समय वीरान और खौफनाक लगने लगता है। अंधेरे में खाली प्लेटफार्म धीमी रोशनी में चमकती पटरी और दूर से आती ट्रेन की आवाज एक अजीब सा माहौल बना देती है। यह कहानी बेगमपुर रेलवे स्टेशन की है। यह स्टेशन दिन में आम रेलवे स्टेशनों की तरह ही व्यस्त रहता है। हर घंटे ट्रेनें आती जाती रहती हैं। यात्री प्लेटफार्म पर दौड़ते रहते हैं और अनाउंसमेंट की आवाज चारों ओर गूंजती रहती है। लेकिन जैसे ही सूरज ढलता है और रात का अंधेरा गिरता है, यह स्टेशन किसी और ही दुनिया का हिस्सा लगने लगता है। रात में यहां कोई भी ट्रेन रुकती नहीं। सभी ट्रेनें तेजी से इस स्टेशन को पार कर जाती हैं। मानो कुछ ऐसा हो जिसे छूने से वे भी डरती हो। प्लेटफार्म नंबर तीन की ओर तो कोई देखता भी नहीं क्योंकि यहां के लोग कहते हैं कि वहां कोई और भी मौजूद है। कोई ऐसा जो अब भी अपनी आखिरी ट्रेन पकड़ने की कोशिश कर रहा है। करीब 5 साल पहले इसी स्टेशन पर एक दर्दनाक हादसा हुआ था। इस घटना के बाद से ही कुछ अजीब चीजें होने लगी। यह कहानी एक ऐसे र...